Description
ओशो की पुस्तक “ढाई आखर प्रेम का” प्रेम की गहनता और उसकी सहजता पर एक विशिष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। ओशो का मानना है कि प्रेम किसी परिभाषा में बंधा नहीं जा सकता; यह एक ऐसी अनुभूति है जो सीमाओं से परे है और किसी भी प्रकार के अनुशासन या नियमों में नहीं बंधती। ओशो प्रेम को आत्मा का स्वाभाविक गुण मानते हैं। उनका कहना है कि प्रेम न तो किसी शर्त पर आधारित होता है, न ही किसी लाभ-हानि के आधार पर। यह शुद्ध और निर्दोष भावनाओं से परिपूर्ण होता है।
ओशो प्रेम को जीवन की सबसे सरल, मगर सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा मानते हैं। वह कहते हैं कि प्रेम में डूबे हुए व्यक्ति में किसी प्रकार की नकारात्मकता या द्वेष नहीं रहता। प्रेम स्वयं में संपूर्णता का अनुभव है, और जब व्यक्ति इस अवस्था में पहुंचता है, तो उसके भीतर का द्वंद्व समाप्त हो जाता है। यह प्रेम केवल व्यक्ति विशेष तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह संपूर्ण सृष्टि के प्रति होता है।
ओशो प्रेम को न तो संबंधों का बंधन मानते हैं, न ही किसी सामाजिक अनुबंध का हिस्सा। उनके अनुसार प्रेम स्वतंत्रता का प्रतीक है और इसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले अपने अहंकार को त्यागना होगा। ओशो का मानना है कि प्रेम का सही अर्थ तभी समझा जा सकता है जब व्यक्ति अपने अहंकार, ईर्ष्या और स्वार्थ से मुक्त हो जाए। केवल तभी वह वास्तविक प्रेम का अनुभव कर सकता है और दूसरों के साथ एक गहरा संबंध स्थापित कर सकता है।
“ढाई आखर प्रेम का” में ओशो बताते हैं कि प्रेम के मार्ग पर चलना साहस की बात है क्योंकि यह मार्ग हमें अपने भीतर की ओर लेकर जाता है, जहाँ हमें अपने वास्तविक अस्तित्व का सामना करना होता है। ओशो का कहना है कि प्रेम में समर्पण का भाव होना चाहिए और इस प्रेम में किसी प्रकार की अपेक्षा या मांग नहीं होनी चाहिए।
इस पुस्तक में ओशो ने प्रेम को एक साधना के रूप में प्रस्तुत किया है, जहाँ प्रेम आत्मिक विकास का मार्ग बनता है। उनका संदेश यही है कि प्रेम के ढाई अक्षर में सम्पूर्ण जीवन का सार छिपा है, और इसे समझकर ही व्यक्ति सच्चे आनंद और शांति का अनुभव कर सकता है।
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