Description
बुद्धत्व का मनोधवज्ञान (Psychology of Enlightenment) ओशो द्वारा लिखी गई एक पुस्तक है जो बुद्धत्व और उसके पीछे की मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया को गहराई से समझाती है। ओशो के विचारों में, बुद्धत्व का अर्थ केवल आत्मज्ञान या ज्ञान का अर्जन नहीं है, बल्कि यह एक गहरे रूपांतरण का मार्ग है जो व्यक्ति को अंतर्मुखी बनाता है, अहंकार को समाप्त करता है और वास्तविकता की उच्चतम समझ प्रदान करता है।
इस पुस्तक में ओशो इस बात पर जोर देते हैं कि हम सभी के भीतर एक अंतर्निहित संभावना है जो हमें आत्मज्ञान की ओर ले जा सकती है। उनका मानना है कि बुद्धत्व या आत्मज्ञान किसी विशेष व्यक्ति के लिए आरक्षित नहीं है, बल्कि यह प्रत्येक व्यक्ति के भीतर पहले से मौजूद है। यह किसी विशिष्ट प्रयास या साधना से प्राप्त नहीं किया जा सकता बल्कि यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। ओशो के अनुसार, इसे प्राप्त करने के लिए हमें केवल अपने मानसिक बंधनों और झूठे अहंकार को छोड़ना होता है।
ओशो बताते हैं कि हमारा मन लगातार विचारों से भरा रहता है और हमें बाहरी दुनिया में उलझाए रखता है। उन्होंने “साक्षी भाव” का सिद्धांत समझाया है, जिसमें व्यक्ति अपने विचारों और भावनाओं का साक्षी बनता है, बिना उन्हें अपनाए या उन्हें नियंत्रित करने की कोशिश किए। यह ध्यान की अवस्था में पहुंचने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। जब हम अपने विचारों और अहंकार से मुक्त हो जाते हैं, तब हम अपनी आत्मा की वास्तविकता के करीब पहुँचते हैं, जिसे ओशो “सहज बुद्धत्व” कहते हैं।
ओशो के अनुसार, ध्यान और आत्मनिरीक्षण के माध्यम से व्यक्ति अपने भीतर की शांति को खोज सकता है और सच्ची स्वतंत्रता को प्राप्त कर सकता है। उन्होंने पारंपरिक धार्मिकता की सीमाओं को चुनौती देते हुए बताया कि बुद्धत्व प्राप्त करने के लिए किसी भी विशेष मार्ग या नियम का पालन करना आवश्यक नहीं है, बल्कि यह एक व्यक्तिगत यात्रा है जिसमें व्यक्ति को अपने भीतर उतरना होता है और अपने स्वयं के अनुभवों से सीखना होता है।
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